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सप्रेम... जय गुरुदेव !

सूरज, चन्द्रमा, तारे, गृह, नक्षत्र एवं पृथ्वी का भी नही था आस्तित्व | एक अविनाशी सत-चित आनंद स्वरुप ध्यानमें लीं अनंत चैतन्य स्वरुप प्रकश छाया था | अनादी प्रकृति, मायाशक्ति निर्माण से पंच महाभूतो, पंचप्राणों, पंचज्ञानेन्द्रियो, पंचकर्मेन्द्रियो प्रक्रुतियोंका उगम हुआ और निर्माण हुआ समष्टि, याने सृष्टि और व्यष्टि याने प्राणपिंड का | यही है सूक्ष्म सत आत्मा स्थूल जगत का सत्य आधार | और यही अविनाशी अमर सत तत्वोंको जाननेका एवं आचरण करने का मार्ग है “ सनातन सतपंथ ”

सनातन सतपंथ के अनुयायी परस्पर मिलते है तब जय गुरूदेव, जय श्री निष्कलंकी नारायण ऐसे सांकेतिक नामसे अभिवादन करते है